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उड़ान : सुन मेरे मन के परिंदे आगे ही तू बढ़ता चल।

उड़ान
सुन मेरे मन के परिंदे 
आगे ही तू बढ़ता चल।
न सोच तू इन राहों का 
बस आगे ही निकलता चल।
न सोच तू राहगीरों का
वो भी खुद पंथ पे मिल जाएंगे।
न सोच तू इन हवाओं का 
ये भी एक दिन बह जाएंगी।
न सोच तू इन तूफानों का
ये भी एक दिन थम जाएंगे।
न सोच तू इस अंनत व्योम को
इसको भी एक दिन तुम छू जाओगे।
न डर तू अनजान राहों से
ये भी एक दिन परिचित हो जाएंगे।
सुन मेरे मन के परिंदे 
बस तू आगे बढ़ता चल
अपनी उड़ान यूँ ही तू भरता चल।

राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
राजकीय उत्कृष्ट वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय
गाहलिया 
पता-गांव जनयानकड़
पिन कोड -176038
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
9876777233
rajivdogra1@gmail.com
मौलिकता प्रमाण पत्र
मेरे द्वारा भेजी रचना मौलिक तथा स्वयं रचित जो कहीं से भी कॉपी पेस्ट नहीं है।

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