Advertisement

ads header

वह अपराजेय योद्धा... देश दीवानगी अध्यात्म और शिक्षा की त्रिवेणी पंडित विश्वंभर सिंहजिनके नाम पर सोमवार को भव्य द्वार का लोकार्पण करेंगे पूर्व राष्ट्रपति कोविंद

सहारनपुर 27 नवंबर ( मोहित राय जसवाल  ) :तत्कालीन मेरठ जिले के बामनोली के मूल निवासी (यह गांव अब बागपत जिले में आता है) वह बिहार के बाढ़ जिला में गंगा किनारे जल गोविंद स्थित एक बड़ी वैष्णव गद्दी के महंत लेकिन देश दीवानगी में महंत आई छोड़कर आर्य समाज वह शिक्षा जगत में सक्रिय रहते हुए सामाजिक सांस्कृतिक व राष्ट्रीय क्रांति में अपनी भूमिका निभाने वाले पंडित विश्वंभर सिंह ने सहारनपुर को अपनी कार्य स्थली बना लिया था । आरंभ से ही चौधरी चरण सिंह व डॉ संपूर्णानंद जैसों के संपर्क में रहकर स्वाधीनता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने वाले पंडित जी का मानना था कि किसी भी मूल्य पर देश को ब्रिटिश शासन से आजादी दिलाना ही हम लोगों का मकसद था, गिरफ्तारी गोली फांसी वह यात्राओं से बेखौफ होकर। उद्देश्य जेल जाना नहीं मुल्कों को आजाद कराने के लिए जीना और जरूरत पड़ने पर मरना भी था। चंद्रशेखर आजाद शरीफों ने गोली खाना स्वीकार किया गिरफ्तार होना नहीं पंडित जी की सोच थी कि महान योद्धा योगेश्वर कृष्ण धैर्य विवेक और अंततः सफलता की त्रिवेणी है वह 17 बार जरा संघ के सामने से पलायन इसलिए करते हैं कि उन्हें शक आकर अंततः 98 बार में जीतना ही है। भले ही इस लक्ष्य सिद्धि के लिए किए गए कार्य से उनका नाम रणछोड़ भी पड़ गया हो। वह कहते, " मेंढा पीछे को हटकर ही आगे टक्कर लेता है"! पंडित जी राष्ट्रीय आंदोलन के परिपेक्ष में कहते 'कार्यम वा साधयेयम देहम वा पातयेयम' यानी मुझे कार्य सिद्धि चाहिए भले ही इसके लिए देह त्याग क्यों न करना पड़े। राष्ट्र धर्म निभाने की राह में मृत्यु भी आए तो उसको शहर स्वर्ण करूंगा लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि गिरफ्तार होकर फांसी चढ़ूंगा। वह कहते कि यदि केवल गिरफ्तारी और जेल या फांसी ही लक्ष्य होता तो लड़ाई चल ही नहीं सकती थी। मैं बोलते "राष्ट्रपथ चलते हुए जो भी मिले, यह भी सही वह भी सही"। उनकी कार्यशैली का यह स्वरूप था कि मैं कभी इस लड़ाई में अन्य बलिदानों की तरह देश के काम आ भी गया तो गुरु होने के नाते समर्थ गुरु रामदास की तरह मरने से पहले कुछ शिवाजी भी देश को दे ही जाऊंगा।

      सहारनपुर के आदर्श शिक्षक पंडित विशंभर सिंह स्वातंत्र्य योद्धा व समाज सुधारक होने के साथ-साथ नगर के पहले शिक्षक थे जिन्हें सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन ने स्वयं अपने हाथों से राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से नवाजा था। आजादी मिलने के बाद भी पंडित जी की लड़ाई रुकी नहीं उनकी आजादी पानी की लड़ाई फिर आजादी बचाने की लड़ाई में बदल गई। शिक्षा के प्रसार नारी सम्मान व दलित उद्धार के अलावा समाज में देश में धर्म के प्रति जन जागरण की अलख जगाने वाले लोगों में इस शहर के शिक्षक प्रख्यात वैदिक चिंतक और स्वतंत्रता सेनानी पंडित विशंभर सिंह अपने कर्तव्य को ही पूजा मानते थे। पंडित जी का स्कूल है उनका मंदिर और विद्यार्थी ही उनके देवता थे उनका मानना था कि पत्थर की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा के बजाय इन जीवित मूर्तियों में संस्कार प्रतिष्ठा करके हम देवत्व और तिब्बत व को जिंदा रखकर परमेश्वर की अधिक बेहतर पूजा कर सकते हैं और देश को मजबूत बनाकर आजादी को अक्षुण्ण बना सकते हैं। शिक्षा धर्म और देश प्रेम की त्रिवेणी पंडित विशंभर सिंह जी सभी धर्म पंथ्यों का आदर करते थे और उनका मानना था कि धर्म पालन इंसान को नेक और एक होने की राह दिखाता है। ब्राह्मण होते हुए भी उन्हें हिंदी संस्कृत के अलावा अंग्रेजी उर्दू और फारसी पर भी खासा अधिकार था और वेदों के अलावा गुरुवाणी कुरान बाइबिल और जैन ग्रंथों के वह गहरे अध्येता थे। सामाजिक जीवन में पंडित जी पर सभी को ऐसा यकीन था कि हाईकोर्ट तक के मुकदमा लड़ने के बाद भी जटिल मुकदमे में लोग उनकी चौखट से न्याय पाते थे।
      पंडित जी के पुत्र और अंतरराष्ट्रीय योग गुरु पद्म श्री स्वामी भारत भूषण ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने एक बार उन्हें अपनी ठेठ बागपती भाषा में बोलते हुए बताया था "पंडित विशंभर सिंह जी से मेरा बहुत पुराना बचपन का नाता है, उनका लड़ाई लड़ने का ढंग निराला था, वह स्वयं सक्रिय रहते हुए क्रांतिकारियों को संरक्षण देने और उनके परिवारों की मदद करने में नहीं चूकते थे। चौधरी चरण सिंह जी ने बताया कि बाद में भले ही जेल में सजा काटना स्वाधीनता सेनानी होने का आधार बन गया हो लेकिन इसकी वजह से वह लोग भी सेनानी होने की पेंशन पाने लगे जो उस दौर में अन्य अपराधों में भी सजा काट रहे थे। उन्होंने अपनी और पंडित जी की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम लोगों ने पेंशन पाने के लिए लड़ाई नहीं लड़ी थी मैं तो बस एक जज्बा था और हमारे गुरु महर्षि दयानंद ही प्रेरणा थी। एक रोचक संस्मरण सुनाते हुए चौधरी साहब ने बताया कि आजादी की लड़ाई के दौरान पंडित जी ने एक बार तो मुझे पुलिस की गारद से बचाकर अपने घर मैं बुक से में लुको (छिपा) लिया था और गारद को खाली हाथ बैरंग ही वापस जाना पड़ा था। चौधरी साहब ने बताया कि जब हम लोग जेल में जाते थे तो पीछे पंडित जी देश की आजादी के लिए जेल जाने वालों के परिवारों की मदद करते थे जो उन दिनों बड़े जोखिम का काम था।
     स्वामी भारत भूषण ने बताया कि मुझे उस दिन अपनी कोई परंपरा पर अत्यंत गर्व हुआ था जब राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने मुझे एक भेंट के दौरान बताया कि बिहार के गवर्नर रहते हुए वह बाढ़ जिले में गंगा किनारे स्थित जल गोविंद मठ पर गए हैं पंडित जी जिस के महंत हुआ करते थे।
     पंडित जी आजादी के बाद बनी प्रदेश की प्रथम पाठ्यक्रम समिति के सदस्य थे शिक्षा मंत्री डॉ संपूर्णानंद ने उनके विचारों को विशेष महत्व देते हुए पंडित जी की पहल पर उत्तर प्रदेश में कक्षा 6 से 12 तक हिंदी के साथ अनिवार्य संस्कृत पढ़ाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। असंभव शब्द पंडित विशंभर सिंह के शब्दकोश में नहीं था। नगरपालिका के विद्यालय में शिक्षक रहते हुए उन्होंने शिक्षा को केवल किताबी पढ़ाई से बाहर निकालकर समाज व देश के लिए उपयोगी नागरिक तैयार करने की एक नई शैली देते हुए नगर के पहले राष्ट्रीय शिक्षक होने का गौरव पाया तो सहारनपुर नगर निगम ने ऐसे महापुरुष के सम्मान में भव्य पंडित विशंभर सिंह द्वार व उन्हीं के नाम पर मार्ग का नामकरण करने का ऐसा गौरव पा लिया कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी उसका लोकार्पण करने के लिए सहारनपुर आए हैं। राष्ट्रपति जी ने सुना में भारत भूषण को बताया था कि बिहार का राज्यपाल रहते हुए उन्होंने वह जल गोविंद मठ के दर्शन किए थे जिसके पंडित जी महंत थे जिसे त्याग कर उन्होंने आर्य समाज, अध्यापन और देश दीवानगी की राह पकड़ ली थी। राष्ट्रीय शिक्षक पंडित विशंभर सिंह द्वारा शिक्षकों व समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।

Post a Comment

0 Comments